बाई पुराण पर कितना लिखूं
शब्द कम पड़ जाते हैं
हमारी बाई है सब से अलग
चाहे जब छुट्टी मनाती
आती है होली दीवाली
आते ही बड़ा उपहार मांगती
काम की न काज की
ढाई मन अनाज की की
कहावत पूर्ण रूप से चरितार्थ करती
उस पर करना पड़ता एतवार
रह गए उपहास बन कर
हमारी वेदना कोई न समझे
बेवकूफ समझ कर हमें
समझ में आता है सब
पर क्या करें अब
बुढ़ापे का कोई न सहारा
यही जान जीना हराम किया हमारा
अपना दुःख किसे बताएं
जो भी आता ज्ञान बाटता
क्या है दोष हमारा
कोई समझ नही न पाता
सारा दोष हमारा ही बताता |
आशा
हर घर की यही कहानी है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
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