है बहाना रोज का
रोज रोज देर से आना
झूठे सच्चे बहाने बनाना
एक ही बात को
कई बार दोहराना
फिर भी मन को
दिलासा दिलाना
कुछ गलत नहीं किया है जाना
अनजानें में हुई भूल को
सच्चा कह कर मन बहलाना
यही फितरत है उसकी
मिल कर बिछुड़ने की
आदत है उसकी
फिर भी आदत को
सच का चोगा पहनाना
यही है मन का विचलन
उसने न जाना |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.02.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3261 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना हेतु आभार |
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 88वां बलिदान दिवस - पंडित चंद्रशेखर आजाद जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमुझे आपका प्रस्ताव पसन्द है |आवश्यकता हेतु संपर्क करूंगी|
बहानेबाजी कुछ लोगों की फितरत होती है ! बढ़िया रचना !
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