न जाने कैसे
नियम
बनाए गये
है कैसी विदेश नीति
आए दिन पीछे से छुरा चलाते है
वार अचूक करते है
जरा भी नहीं सोच जाग्रत होता
जाने कितनी गोद
सूनी
होंगी माताओं की
जाने कितनी महिलाओं को
दर्द सहना होगा बिछोह का
सूनी उजड़ी मांगों का
मुल्क कब तक सहेगा
पीठ पीछे वार को
क्या कोई कठिन कदम
कभी
न उठेगा
ऐसा कब तक चलेगा
रोजाना वीर शहीदों की शहादत
सीमा पर डर का आलम
मुल्क कबतक सहेगा
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-02-2019) को "श्रद्धांजलि से आगे भी कुछ है करने के लिए" (चर्चा अंक-3250) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अमर शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंऐसा कब तक चलेगा
जवाब देंहटाएंरोजाना वीर शहीदों की शहादत
सीमा पर डर का आलम
मुल्क कबतक सहेगा
सही कहा आपने ,बस बहुत हो चूका।
सुप्रभात\ टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
हटाएंयही तो विडम्बना है ! बातें, संवाद, घोषणाएं तो बहुत होती हैं लेकिन कोई ठोस और कारगर कदम नहीं उठाया जाता ! देशवासियों की भावनाएं आहत हैं ! इस क्षति की भरपाई असंभव है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
कुछ प्रश्न जो उठते हैं मन में लेकिन जवाब नही मिलता । हृदयस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी |
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंनमन वीर शहीदों को
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
हटाएंनमन वीर शहीदों को
विनम्र श्रदांजलि |टिप्पणी के लिए धन्यवाद |