25 अप्रैल, 2019

मन खिन्न हुआ




  मन खिन्न हुआ दिल टूट गया
थी  जो अपेक्षा   उस पर खरे न उतरे 
जाने कितने अहसान कियेपर जताना कभी नहीं भूले
संख्या इतनी बढ़ी कि भार सहन ना हो पाया
बेरंग ज़िंदगी का एक और रूप नज़र आया
कहने को  सब कुछ है पर कहीं न कहीं अंतर है
छोटी-छोटी बातों से किरच-किरच हो दिल बिखर गया
गहरे सोच में डूब गया
 वेदना ने दिये ज़ख्म ऐसे नासूर बनते देर न लगी
अब कोई दवा काम नहीं करती दुआ बेअसर रहती
अश्रु भी सूख गये अब तो पर आँखे विश्राम नहीं करतीं 
वेदना इतनी गहरी कि रूठा मन शांत नहीं होता
है इन्तजार उस परम सत्य का
जब काया पञ्च तत्व में विलीन होगी
झूठी माया व्यर्थ का मोह सभी से मुक्ति मिल पायेगी
वेदना तभी समाप्त हो पाएगी |
                            आशा

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-04-2019) को "वैराग्य भाव के साथ मुक्ति पथ" (चर्चा अंक-3317) (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 25/04/2019 की बुलेटिन, " पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

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  4. नकारात्मकता इंसान को खिन्न कर जाती है ! जीवन के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक ही होना चाहिए ! सार्थक सृजन !

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  5. सुप्रभात
    धन्यवाद संजय टिप्पणी के लिए |

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  6. दर्द बिखेर दिया है आपने। क्या लिखूं समझ नहीं आता। धनात्मक भाव पिरोएं। शुभकामनाएं ।

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  7. अत्यंत गहन अर्थ लिए, भावुक करती हुई रचना है दीदी। सचमुच जीवन जब तक है तब तक वेदना का साथ छूटने वाला नहीं। सादर।

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  8. सूचना हेतु आभार श्वेता जी |

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  9. बहुत खूब आशा जी | जीवन में व्यर्थ का मोह ही वेदना का सबसे दबा कारण है | सार्थक सृजन के लिए सादर सस्नेह शुभकामनायें |

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    1. धन्यवाद टिप्पणी के लिए रेणु जी |टिप्पणी अच्छी लगी |

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