आया है पैगाम
मन का मोर नाच रहा
चंग की थाप पर
जिन्दगी चैन से गुजरेगी
गिले शिकवे दूर होंगे
प्यार की शहनाई बजेगी
हर समय हर बात पर
यह पैगाम नहीं
है आवाज सच्चे दिल की
जिससे भागना सही नहीं
अपने मन की आवाज पर
जोर दे करना है स्वीकार
उस पैगाम की भाषा पर
एलान करना है अमल करना है
केवल व्यर्थ यूँ ही नहीं
बेमतलब शोर करना है
तभी अमन का विगुल बजेगा
सन्देश का मकसद
सफल हो कर रहेगा |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंवाह ! सकारात्मक सन्देश लिए सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसाधना टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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