रोज रात रहता
पहरा स्वप्नों का
पहरा स्वप्नों का
उनमें भी वर्चस्व तुम्हारा
 तुमसे ही जाना है 
तुमसे ही तुम्हें चुराया है 
हमने  अपने ख्वावों  से 
चुराया है तुम्हें 
जब भी स्वप्न आते हैं 
चाहे जो भी हो उनमें 
 मुख्य पात्र तुम्ही होते हो
तुम्हारे बिना कोई
 स्वप्न पूरा न होता 
जैसे ही आँखें खुल जाती हैं 
तुम न जाने कहाँ हो जाते तिरोहित 
मन को बहुत संताप होता  
जब मुख्य पात्र  ही कहीं 
 गुम हो जाता है 
प्रमुख पात्र के खो जाने से
 उदासी हावी हो जाती 
फिर नींद नहीं आती 
 तारे गिन गिन कटती रातें 
तुम क्या जानों
 है प्रमुख पात्र की भूमिका
क्या ?
सारे सुख रस विहीन हो जाते 
जब तक तुम बापिस न आते 
कोई तुम्हारी जगह न ले पाता
 स्वप्न अधूरा ही रह जाता |
आशा                     



