25 मार्च, 2020

मन का कहा


मन का कहा स्वीकार किया है
उसने  दिल का दामन बचाया कहाँ है
प्रभू से कुछ भी नहीं चाहा है
मोहब्बत का फलसफा सुलझाया  कहाँ है |
अभी तो हाथ जोड़े हैं नमन किया है
मंदिर में भोग लगाया कहाँ है
अभी तो स्वच्छता की है मंदिर  की    
बुझते दीपक को जलाया कहाँ है |
दी है परीक्षा प्रभु के समक्ष
नतीजे की अपक्षा को छिपाया कहाँ है
  वह भी राह देख रहा है  
ईश्वर को भोग चढ़ाया कहाँ है |
 है मन के भावों की  पारदर्शिता  आवश्यक
उसने  किसी को झुटलाया कहाँ है
प्यार प्रेम वह  नहीं जानती
उसने मन के भावों को छिपाया कहाँ है |
आशा 

6 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  2. वाह ! बढ़िया रचना ! अति सुन्दर !

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    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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