ख्याल क्यूँ सो गए स्वप्नों में क्यूँ हुए
नाराज   
याद न आए कभी  अपनों की छाया तक  में 
कभी भूले से मन में भी टिक जाया करो 
इस तरह हमें न सताया करो 
क्या भूल हुई हमसे ?
क्यूँ  इस तरह  नजरअंदाज किया 
किसी ने न खबर ली हमारी  
जीवन में पहले ही से गम कम  न थे 
क्या कारण हुआ और उन्हें बढ़ा चढ़ा  फैलाने  का 
रोने को बाक़ी   जिन्दगी बहुत  है 
कुछ पल तो दिए होते हंसने  मुस्कुराने को 
ख्यालों क्या यह गलत नहीं है
मुझसे मेरा सुख क्यूँ छीन लिया तुमने  
मुझ से यह दूरी कैसी कारण तो बताया  होता 
किस बात के लिए की  है उपेक्षा मेरी 
यदि  अपनी त्रुटि जान पाती
 कोई  अपेक्षा न करती तुमसे भी  
 अपने गलत सोच को दर किनारे करती 
 तुम्हें उलाहना  कभी न देती
मुझे ख्यालों में दिन रात जीना बहुत प्रिय है
 तुम कैसे भूले? क्या है यह अन्याय नहीं 
तुमने स्वप्नों में भी  आना छोड़ दिया
मेरे प्यार का क्या  अंजाम  दिया |
                                 आशा 

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (02-04-2020) को "पूरी दुनिया में कोरोना" (चर्चा अंक - 3659) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पूजा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर सी कोमल रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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