तुम यदि सहारा न दोगे उसे
उसकी ओर हाथ न बढ़ाओगे
कौन देगा रिश्ते की गर्मीं उसे
और क्या अपेक्षा करोगे उससे |
तुम यदि प्यार में किये वादे निभाओगे
प्रीत की वही ऊष्मा उसमें भी पाओगे
कितनी आवश्यकता है तुम्हारी उसे
उसके सिवाय कौन जानता है तुम्हें |
इस हाथ लोगे दूसरे से भर पूर दोगे
तुम हो हमकदम हमख्याल उसके
रहोगे सदा साथ हमजोली हो उसके
उसके मन को कभी न जान सकोगे |
वह समर्पण की भावना जो है उसमें
तुम कुछ अंश भी उसका दे पाओगे
वह बदले में कुछ नहीं चाहती
उन लम्हों में झूमता उसे पाओगे |
आशा
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार अनीता जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डा.जेन्नी शबनम जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंहम्म
जवाब देंहटाएंथोड़े से प्यार में कोई कितना खुश रहता है, ये जानने की जरूरत है.
उम्दा रचना.
नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद रोहितास जी |
प्रेम में समर्पण और विश्वास की अहमीयत पर ज़ोर डालती प्रेरक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर नमन।
धन्यवाद रवीन्द्र जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! कोमल भावनाओं से युक्त सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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