यात्रा संस्मरण (२)
जैसे ही होटल पहुंचे पास के कमरे से जानी पहचानी आवाज सुनाई दी |बाहर निकल कर देखा तो पता चला किहमारे एक करीबी रिश्तेदार उस कक्ष में आकर ठहरे थे |बहुत प्रसन्नता हुई मिलकर |रात को बहुत देर तक बातें होती रहीं |फिर ख्याल आया की सुबह उठ कर ऋषीकेश के लिए रवाना होना है |झटपट से अपने कमरे की ओर प्रस्थान किया |
सुबह जल्दी से तैयार होकर बाहर निकले |बहुत सुन्दर नजारा देखा
स्टैंड पर गाड़ी आने का समाचार मिला |उस ओर चल दिए |सामान रखा जा चुका था |हमारे पहुंचाते ही मिनी बस चल दी |अधिक समय नहीं लगा ऋषिकेश पहुँचाने में |
सब से पहले एक मंदिर के दर्शन किये फिर लक्ष्मण झूले की और प्रस्थान किया | इतना बड़ा पुल पहले कभी नहीं देखा था आँखें हुई हैरान |पुल के नीचे से तेजी से बहती गंगा |दृश्य बड़ा मनोरम था |दूसरी ओर बड़ी बड़ी धर्मशालाएं थी |घाट पर लोग स्नान कर रहे थे|पूजा अर्चन कर रहे थे |हमने वहां स्नान नहीं किया | थोड़ा आगे बढे जहां बहाव कम लगा |सोचा आराम से यहाँ ही नहालें पर
बहाव इतना अधिक तेज था कि पैर ही नहीं टिक पा रहे थे |बड़ी बेटी के पाँव उखाड़े और बहने लगी |आसपास के लोगों ने उसे पकड़ा और हिदायत दी कि बिना हाथ थामे आगे कदम नहीं उठाना |खैर एक हादसा होते होते बचा |जल्दी से और मंदिरों के दर्शन किये और
वृद्ध आश्रम भी देखा | फिर चल दिए अपने अगले गंतव्य की ओर|--
(क्रमशः)
बहुत अच्छे संस्मरण हैं।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंजीवंत चित्रण ! ऋषिकेश हरिद्वार में गंगा का बहाव बहुत तेज़ होता है ! सावधानी की बड़ी ज़रुरत होती है ! विपदा टल गयी यह अच्छा हुआ ! रोचक वर्णन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
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