28 दिसंबर, 2020

ओस की नन्हीं बूँदें


                                                                    ओस की  नन्हीं बूँदें  

हरी दूब पर मचल रहीं  

धूप से उन्हें  बचालो

कह कर पैर पटक रहीं |

देखती नभ  की ओर हो भयाक्रांत  

फिर बहादुरी  का दिखावा कर

कहतीं उन्हें भय नहीं किसी का  

रश्मियाँ उनका  क्या कर लेंगी |

दूसरे ही क्षण वाष्प बन

अंतर्ध्यान होती दिखाई देतीं  

वे छिप जातीं दुर्वा की गोद में

मुंह चिढाती देखो हम  बच गए  |

पर यह क्षणिक प्रसन्नता

अधिक समय  टिक नहीं पाती

आदित्य की रश्मियों के वार से

उन्हें बचा नहीं पाती |

 

आशा

 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आप को भी बीते हुए कल का प्रणाम |मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. अति सुन्दर मानवीकरण ! मनोहारी इन्द्रधनुष के सृजन की सार्थक कथा ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: