दीपक ने जोड़ा साहित्य
डाल दिया स्नेह उसमें
बिन बाती स्नेह रह न पाया
अस्तित्व अपना खोज न पाया दीपक में |
जब माचिस जलाई पास जाकर
बाती ने लौ पकड़ी स्नेह पा
वायु बाधा बनी लौ कपकपा कर सहमी
पर अवरोध पैदा न कर पाई |
आत्म विश्वास था इतना प्रवल लौ में
कभी डिगने का नाम न लिया
ना हारी की लड़ाई बहुत शिद्दत से
दीपक की हिम्मत बढ़ाई स्नेह ने |
एक प्रश्न फिर भी उठा मन में
क्या किसी साधन की कमी से
दीपक जल पाएगा कभी
आवश्यक संसाधन बने हाथ उसके |
सब ने बराबर से सहयोग किया
दीपक के हाथों को मजबूत किया
यही सौहाद्र बना सफलता का कारक
दीपक न डरा वायु के बेग से|
वायु की उपस्थिती में लौ का नृत्य देख
हुआ नाज स्वयं पर और
अपने सह्योगिओं के सहयोग पर |
आशा
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना कोआज चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए |
अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए अमृता जी |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संदीप जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ....बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उर्मिला जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुर सुन्दर रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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