21 मार्च, 2022

बोलती आँखें



तुम बोलो या नहीं

या मुंह में ताला लगा लो    

पर आँखे तुम्हारी बोलतीं हैं

होती है गवाह तुम्हारे अंतस की  |

नैन सदा सजग रहते हैं

अवसर मिलते ही दिखा देते हैं सब 

कितनी बातें भी छिपालो मन में   

उन में अक्स उतरता सब का |

 दिखई देता स्पष्ट

 चाहे न बताओ उन्हें 

पर सब स्पष्ट हो जातीं उनमें |

आँखें देखते ही जान जाती हैं 

तुम्हारे मन की बातें 

लाख कोशिश करो  

कोई बात छिप नहीं सकती |

तुम्हारी  आँखों में है अद्भुद क्षमता 

सजल हो कही अनकही 

सब कह जाती हैं वें हैं दर्पण सी

 सब अक्स स्पष्ट उभरते हैं वहां |

 जब अश्रु जल प्रवाहित होता नैनों से  

दीखता कलकल करती नदिया सा

 व्यवधानों की चिंता न करता 

 अनचाही स्मृतियां बहा ले जाता

 अपनी लहरों के संग |

आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. आँखें सचमुच अभिव्यक्ति का अनोखा माध्यम होती हैं ! मौन रह कर भी बहुत कुछ कह जाती हैं ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: