कुछ तुम बदलो कुछ मैं
तब सामंजस्य बना रहेगा हम दौनो के बीच
व्यर्थ का तर्क कुतर्क
अशान्त नहीं करेगा अपने जीवन को |
स्पष्ट संभाषण है जरूरी
जीवन की गाड़ी चलाने में
किसी के कहने से
कुछ नहीं बदलेगा
चाहे पूंछ लो जमाने से |
अपने गिरह्वान में झांको
अपनी कमियां स्वीकारो
उनका एहसास करो
कुछ मुझे भी समय दो सोचने का |
यदि यही बात समझ पाओगे
जीवन जीने की कला आ जाएगी
महक जिन्दगी में होगी
बेनूर जिन्दगानी ना होगी |
किसी की सलाह पर
कब तक चलोगे
जहां से चलना था वहीं ठहर जाओगे
जिन्दगी में आगे न बढ़ पाओगे |
आशा
वाह ! चिंतनपरक सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंThanks for the information of mypost
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंThanks for your comment
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