ना किया अलगाव ही
सब से समता का भाव रखा
पर सुनी सब की करी मन की |
कभी सोचा न था लोग
कहेंगे कटू भाषी मुझे
मन को बड़ा झटका लगा
मैंने आत्म मंथन किया |
सोचा विचारा कहाँ कमीं
रही स्वभाव में मेरे
कोई सही उत्तर न मिल पाया |
जिसदिन मन मेरा रहा शांत
फिर से उसी प्रश्न ने दिया झटका मुझे
फिर सोचा शायद मुझमें ही
कहीं कमीं थी तभी मुझसे
किसी को लगाव न रहा मुझसे |
किसीने कहा मगरूर मुझे
किसी ने कहा बहुत सर उठाया है
पर किसी ने न समझाना चाह
मझ से शिकायत है क्या ?
उस प्रश्न का उत्तर
न किसी ने सुझाया मुझे
मैं किससे सलाल लूं या
किस से शिकायत करूं |
प्रश्न बार बार मुझे उलझाए रहा
पर कोई हल न निकला
नाही कोई मेरी मदद करता न कभी आएगा मुझे समझाने |
आशा सक्सेना
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आभार यशोदा जी मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |
जवाब देंहटाएंआभार सर इस अंक में मेरी रव्हना को स्थान देने के लिए |
जवाब देंहटाएंबHउत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह!बहुत खूब,!
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंआत्मविश्लेषण करती खुद को ही तराशती सँवारती सी सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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