22 जनवरी, 2023

इतनी बातें किससे करते

     


इतनी बातें कैसे करते 

किसी से घुले मिले नहीं 

जब भी मन से सोचते 

पाते खुद को बहुत अकेला |

जितनी बार मिलने की सोची 

पाया बहुत अकेला खुद को 

कोई नहीं अपना दिखता 

ना ही अपनापन नजर आता |

दूर दूर तक किसी में |

यही कमी रही मुझमें 

 सामाजिक भी  हो नहीं पाए 

जहां गए वहीं किसी से

 गहरे सम्बन्ध बन न पाए |

पाया अलग थलग खुद को 

किसी से अपने विचार

अकेले थे अकेले ही रहे 

मन से किसी के करीब न हुए 

किसी को अपना न सके  |

यही कमीरही  मुझ में 

सब से अलग करती है मुझे 

अकेले आए थे इस दुनिया में 

अकेले ही जाना है|

यहां कोई  निश्चित स्थान भीं नहीं  

जहां ठहर कर विश्राम कर पाएं  

अपनी थकान मिटा पाएं 

किसी को अपना कह पाएं |

आशा सक्सेना 


4 टिप्‍पणियां:

  1. नकारात्मकता कभी कभी हावी होने लगती है मन पर ! उससे बचना ही श्रेयस्कर है ! नये विषय नयी बातों के बारे में सोचिये !

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