23 जनवरी, 2023

कान्हां का बचपन

 


कान्हां तेरे प्यार में दीवानी हुई गोपियाँ

किसी से कुछ कहा नहीं दौड़ी चली आईं

गोकुल में जमुना तीरे कदम्ब के नीचे

रास रचाने को दिन में स्वप्न देखने को |

जैसे ही मुरली की धुन सुनी वे इतनी हुई मस्त

भूलीं वे क्या काम कर रहीं थी उन्हें अधूरा छोड़

जल्दी से चली आगे बढ़ी आवाज दी कहाँ हो तुम

केवल मुरली की धुन सुना रहे हो  क्यूँ सता रहे हो |

यह तो न्याय नहीं तुम्हारा जो इस तरह रुला रहे हो

 हमने माखन बनाया तुम्हारे लिए चलीं जल भरने को

 न तुम आए न माखन खाया न ही मित्रों को खिलाया

हमने तो एक बार ही शिकायत की थी जशोदा माँ से |

 तुम गलत करो और हम कुछ भी  न कहें

यह कैसा न्याय है तुम्हारा तुम शरारत करते जाओ

हम किसी से शिकायत न करें है कैसा न्याय तुम्हारा

यहीं हम कुछ कर न पाए तुम बच  कर निकल गए |

छलिया बंसी वाले हम से तो बंसी अच्छी है जिसे तुमने

ओठो से लगाया उसको , यही गलत किया तुमने

हम तुम्हारे दीवाने  तुमने न की कृपा हम पर | 

आशा सक्सेना 

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