27 फ़रवरी, 2023

मेरी दुविधा


             आज बड़ी उलझन में हूँ

मैंने तो  सोचा था

सारे कार्य पूर्ण कर लिए हैं

जिम्मेदारी मेरी संपन्न हुई है   |

शायद यह मेरी भूल रही

एक पुस्तक में पढ़ा था

जब बच्चे बड़े हो जाएं

उन पर जुम्मेंदारी सोंपी जाएं |

वे यदि सक्षम और समर्थ हों

उन की मदद ली जाए 

कहाँ मैं गलत थी

अपनों और गैरों में भेद नहीं कर पाए |

कोई आए ठहरे सब को अच्छे लगते हैं 

मेंहमान की तरह स्वागत होता है  

पर जाने कब विदा होंगे मन को लगता है |

आज कोई प्यार नहीं किसी को 

अपनों को गैर समझा जाता 

यदि कोई समस्या हो बताया नहीं जाता 

हम भी कुछ लगते हैं सोचा नहीं जाता |

मन उलझनों की गुत्थि लिए घूम रहा दुविधा में 

मैं सोच में पड़ी हूँ क्या करू

दुविधा की चादर लिए

खुशी से हुई मीलों दूर |

आशा सक्सेना 

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