सूखा सावन रहा
सर्दी भी नहीं भर पूर
अभी से गर्मीं का
एहसास हो रहा |
क्या यह नमूना नहीं
ग्लोवल वार्मिग का
असमय मौसम में
परिवर्तन हुआ जाता |
अभ्यास नहीं इस का
पर जीवन यहीं बिताना है
इस बदलाव के संग जीना है
उसे ही खोजने में
वैज्ञानिक जुटे हुए हैं |
मनुष्य ही जुम्मेंदार है
इस परिवर्तन के लिए
इससे कैसे बचा जाए
अब खोज रहा है |
आशा सक्सेना
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंपर्यावरण की चिंता यदि नहीं करेंगे तो खामियाजा तो उठाना ही पडेगा !
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