हम साथ साथ रहे
मैंने तुम्हें जाना
तुम्हारी फितरत को पहचाना
पर तुम ना समझे मुझे||
है मेरी आवश्यकता क्या
किन बातों के पास आकर
अच्छा नहीं लगता मुझे
तुमसे क्या अपेक्षा रखती हूँ
तुम पूरी कर पाओगे या नहीं
कभी सोचने लगती हूँ
क्या कुछ अधिक ही
चाहा तुमसे मैंने
जब चाह पूरी नहीं होती
तुमको बेवफ़ा का नाम दे दिया मैंने
खुद की खुशी को भी
अपना नहीं समझ पाती
पर किसीसे क्या शिकायर करूं
किसी नेमुझाज्को समझा ही नहीं
शयद यही प्रारब्ध में लिखा है मेरे |
आशा सक्सेना
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१९-०३-२०२३) को 'वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये'(चर्चा अंक -४६४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
Thanks for the information of my post
हटाएंमन की उथल पुथल की समीचीन अभिव्यक्ति !
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