07 अप्रैल, 2023

सांझ की बेला में



दिन की तेज  धूप  सहते

जन मानस और जंगल में वृक्ष हरे भरे 

धरती  भी हो जाती  गर्म

गर्मीं में तरसती ठंडक के लिए |

संध्या की राह देखते तब सूरज अस्त होता 

वह गोल थाली सा दिखता

 कभी पेड़ों के पीछे से झांकने लगता     

 आसमान सुनहरा हो जाता

दिखते  पक्षी घर को जाते

 दृश्य बड़ा मनोरम होता |

हम दिन में व्यस्त रह कर जब थक जाते 

अपने घर आते वहां स्वर्ग नजर आता

छत पर पानी छिड़क ठंडा करते   

वहीं बैठ थकान कम करते |

फिर बाग़ में सैर को निकलते

बच्चे खुश होते जब बाग़ में घूमते

जब रात को  हर ओर रौशनी हो जाती

यह घर लौटने का संकेत होती |

शाम के धुधलके के प्रसार से

आसपास  ताज़गी का माहोल होता

फिर जीवंत हो जाते सांझ की बेला में  

स्फूर्ति को संचित करते कल के किये 

यही व्यस्तता रहती प्रतिदिन |

घर आते ही अपने काम में व्यस्त हो जाते 

 बच्चे अपने अध्यन  में अच्छे भविष्य के लिए 

अच्छे प्रतिफल के लिए हम भी होते सहायक उनके 

 ज़रा भी आलस्य नहीं करते सांझ की बेला में  |

आशा सक्सेना 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया एवं सार्थक रचना ! अति सुन्दर !

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  2. घर आते ही अपने काम में व्यस्त हो जाते

    बच्चे अपने अध्ययन में अच्छे भविष्य के लिए

    अच्छे प्रतिफल के लिए हम भीहोते सहायक उनमें

    ज़रा भी आलस्य नहीं करते |

    आशा सक्सेना ,बहुत सुंदर रचना सार्थक करती है की बच्चों के साथ मेहनत में शामिल होना,

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  3. धन्यवाद टिप्पणी के लिए पटेल जी |

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