कविता है बड़ी छोटी सी
अर्थ गूढ समझ से बाहर
जब भी गहन अध्यन किया
बड़ा आनन्द आया |
खेल खेल में ले किताब हाथ में
पढ़ने का शौक पनपा
धीरे धीरे बढ़ने लगा
पर विषय वार पुस्तकों से हुई दूरी
प्रभाव दिखने लगा
पढाई में मन ना लगा |
नंबरों की घटती संख्या
ने सब को सतर्क किया
चाहे जब डाट पड़ने लगी
समझ में आई अपनी गलती
समय निर्धारण हर काम का
नहीं किया था अब सारी पढाई
चौपट होते दिखी
बार बार रोका टोकी की जब सब ने
समझ में आई अपनी भूल
मन को क्लेश हुआ |
अब वक्त का महत्व समझा
फिर पढ़ने में मन लगाया
अब किसी को कोई शिकायत नहीं है
अपनी किताब पढने के लिए
समय निर्धारित किया
अब किसी को शिकायत नहीं थी
उसे भी मन में शान्ति मिली
आशा सक्सेना
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाषा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंइस कविता में तो एक कहानी छुपी है। है ना दीदी ?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए
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