नवल रूप है प्यारा प्यारा
जब देखो अनोखा दिखता
आकर्षण है ग़ज़ब का
मन भूल नहीं पाता |
ये आदतें ये अदाएं
किससे सीखीं तुमने
या प्राकृतिक रूप पाया
ईश्वर से मिली तुम्हें |
नवल अदाएं पाईंं तुमने
बहुत सिंगार ना किया
मुँँह पर लाली, माथे पर बिंदी,
नयनों में कजरा लगाया तुमने |
यह सुन्दर रूप सँँवारा कितने जतन से
सजाई है माँँग किस के लिए
यही सफलता पाई है
नवल रूप की लम्बी आयु के लिए |
जो देखता उसके मन में बस जाती
इन आकर्षक नयनों की यादें
जिनके पास नहीं होती
यह अमूल्य निधि प्रभुु की देन
वे ईर्ष्या भी करते बात बात पर |
पर नवल रूप पा नही सकते
मन में संताप पालते |
आशा सक्सेना
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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