किसी ने क्या चाहा तुमसे उपकार में
मुझे यह उचित नहीं लगा
तुम भूले मुझे
क्या यह
ठीक रहा
मैंने तुम्हें अपना समझा
तभी आस लगाई तुमसे
शायद यही भूल मुझसे हुई |
माफी
भी तुमसे मांगी
पर तुम क्षमा करना भूल गए
दिखावे में क्षमा कर दिया मगर
मन से क्षमा
नहीं कर पाए |
यही भूल हुई मुझसे
मैंने सोचा बात आई गई हो गई
फिर सर ना उठाएगी
मन
को बेचैनी ना होगी |
उसे सुख मिलेगा आगे
पर मन में जन्मी गठान ने
रूप विकृत किया
शांति गायब हुई
बेचैनी ने पैर पसारे |
जीवन बद से बदतर हुआ
पर क्या करते मन मसोस कर
रह गए
कोई हल ना सूझा
आगे ना जाने क्या होगा जीवन कब सहज होगा |
भविष्य में आशा की
किरण कब आएगी
क्षण भर भी नसीव ना हुआ |
आशा सक्सेना
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