स्वर्ग से सुन्दर तुम सा पावन
मुझे कोई नहीं लगता
मन ने गहराई से खोजा
अपनों पराओं का भेद फिर भी ना किया
मन हुआ उदास जब खोज पूरी ना हुई
मैं किसी की ना हो पाई कोई मेरा ना हुआ
यही कमी रही मन में
सच्चे मित्र को ना पहचाना
भले बुरे का ज्ञान ना हुआ
मन उदास हुआ
किसी ने ना अपनाया मुझे
धीरे धीरे ज्ञान हुआ
है मुझ में और दूसरों में भेद क्या
एक खाली खोखला वर्तन
बे नूर जीवन हुआ तुम्हारे बिना
अब कोई आकर्षण नहीं रहा इसमें
अब दुनिया पर से भी
विश्वास उठ
गया है
खुद का भी पता नहीं
आगे क्या होने व़ाला है
पर आगे पीछे की क्या सोचे
शायद भाग्य में यही रहा |
आशा सक्सेना
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