अपने गीत अपनी ढपली
किस तरह की दखलंदाजी
नहीं किसी रचना में
है स्वतः लिखी हुई हो |
जो आनंद आता है
अपनी रचना के पढने में
उसकी कोई बराबरी नहीं
मन फूला फूला रहता है
अपने कृतित्व को देखने में
तब और आनंद आता है
दूसरों के प्रोत्साहन के शब्दों में |
जब अवसर मिलता है
झूम झूम कर गाती हूँ
बड़े प्यार से ढपली बजाती हूँ
देर नहीं लगती
सुनने वालों की दाद समेटने में
यही धन संचित किया मैंने
आज तक गीतों के मेले मैं
|यह है आत्म मुग्धता का एक
सजीव उदाहरण जिसे मैंने अपनाया
दिल खुशी से भर गया
औ आ रों को भी हर्षाया है ||
आशा सक्सेना
बहुत बढ़िया ! सुन्दर रचना !
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