खुशियाँ ही खुशियाँ प्रति दिन
फैली यहाँ वहां चारों ओर
यह मैंनेभी अनुभव किया
दुःख होता है क्या मुझे मालूम नहीं |
सुख क्या है और दुःख क्या
मैने जानने की कभी कोशिश ना की
सुख को मैंने अपनाया
दुःख की परवाह ना की |
सभी ने सराहा किसीने बुरा ना कहा
सभी ने प्रशंसा की मेरी
,ईश्वर ने मुझे बक्षी नियामत
खुशियूं के रूप में जिसे मैंने भाग्य समझा |
सोचा मुझसा कोई ना भाग्य शाली हुआ
आज तक इस भवसागर में
जब दुःख पर नजर डाली
कष्टों की सीमा दिखाई ना दी |
एक बार मन में आया
प्रभु ने क्यों बचाया मुझे
मेरे सत्कर्मों से होकर प्रसन्न
या यश मैंने कमाया अपने गुणों से |
आशा सक्सेना
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