16 अक्टूबर, 2023

खुशियाँ ही खुशियाँ

                        

                      

 खुशियाँ ही खुशियाँ प्रति दिन 

  फैली यहाँ वहां चारों ओर 

    यह मैंनेभी  अनुभव किया  

  दुःख होता है क्या मुझे मालूम नहीं | 

                  सुख क्या है और दुःख क्या

                 मैने  जानने की कभी कोशिश ना की 

                   सुख को मैंने अपनाया 

                 दुःख की परवाह ना की |

सभी ने सराहा किसीने बुरा ना कहा 

सभी ने  प्रशंसा की मेरी 

,ईश्वर ने मुझे बक्षी  नियामत

 खुशियूं के रूप में जिसे मैंने भाग्य समझा |

सोचा  मुझसा कोई ना भाग्य शाली हुआ

 आज तक इस भवसागर में 

जब दुःख पर नजर डाली

 कष्टों की सीमा दिखाई ना दी |

एक बार मन में आया 

प्रभु ने क्यों बचाया मुझे 

मेरे सत्कर्मों से होकर प्रसन्न

या यश मैंने कमाया अपने गुणों से |

आशा सक्सेना 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: