आज बड़ी उलझन में हूँ
मैंने सोचा था
सारे कार्य पूर्ण कर लिए हैं
जिम्मेदारियां सारी संपन्न हुई है |
शायद यह मेरी भूल रही
एक पुस्तक में पढ़ा था
जब बच्चे बड़े हो जाएं
उन पर सोंपी जाए जुम्मेदारियाँ
यदि वे सक्षम और समर्थ हों
उन की मदद ली जाए
पर यहीं मै गलत थी |
यदि खड़े खड़े आते
सब को अच्छे लगते
मेंहमान की तरह स्वागत होता |
पर आज के युग में हमें
गैर की तरह समझा जाता है
कोई प्यार नहीं किसी से
नाही मोह माया यहाँ
भूल से भी सोचा नहीं कि
हम भी कुछ लगते हैं |
आशा
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