सूखे पीले पत्ते बिछे सारी राह में
हवा के साथ में बह चले
धूल धक्कड़ होती चारो ओर
वहां खड़े रहना होता मुश्किल
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पतझड़ का मौसम बड़ा अजीब लगता
सूखी डालियाँ नजर आतीं
वन वीरान होते जाते
कुछ पेड़ों में हरी पत्तियाँ झाँकतीं डालियों के
कक्ष से |
कुछ समय के बाद पेड़ में
हरियाली के दर्शन हुए
लहलहाई पत्तियों से लदी
डालियाँ
अनोखा आकर्षण आया लहराती
डालियों में
गीत गाते रंग बिरंगे पक्षी यहाँ यहाँ वहां डोलते |
जब कानों में गूंजती वह मधुर ध्वनि
पैर स्वतः ही बढ़ने लगते जंगल
की ओर
उसमें ही रमना चाहते वहां
हरियाली में
घूमना चाहते ताजी हवा में |
भुवन भास्कर के आते ही पत्तियों
पर
पैर पसार् लेतीं रश्मियाँ
पूरा बाग़ चमक उठता उनकी आभा
से
मन होता कुछ देर ठहर जाऊं
वहां |
आशा सक्सेना
धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को पांच लिंकों के आनंद में स्थान देने के लिए |
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