21 नवंबर, 2014

अभिलाषा


ना चाहत कुछ पाने की
ना ही झूठे वादों की
रीत जगत की जानी
चलती रहती मनमानी
गीत मधुर तूने गाया
यूं ही नहीं सब ने सराहा
सुनते ही मन भर आया
तूने पुरूस्कार पाया
अभिलाषा थी मेरी 
तू ही तू शिखर पर हो
आज इच्छा पूर्ण हुई
प्रार्थना  स्वीकार हुई
ना छीना अधिकार किसी का
सच में तूने जीना जाना
पारदर्शिता के चलते
जो स्थान तूने पाया
मेरी धारणा झुटलादी
कुछ पाने के लिए
छीनना नहीं आवश्यक
मनमानी हर जगझ नहीं होती
गुणवत्ता भी जरूरी होती |
आशा



19 नवंबर, 2014

लाल यशोदा का



माई री माई
है ढीठ कन्हाई
फोड़ी दधि मटकी
धरती पर पटकी
की झूमाझटकी
यही बात खटकी
यूं बहियाँ मरोड़ी
की जोराजोरी
तब चुनरी सरकी
राधा के सर की
सावला कन्हिया 
बंसी का बजैया 
लगता है रसिया 
वृन्दावन बसिया 
गोरी  सी राधा 
जिस पर दिल वारा 
उससे ही हारा 
लाल यशोदा का |



आशा

18 नवंबर, 2014

बीते दिन लौट नहीं पाए



बीते दिन लौट नहीं पाए
पर दृश्य बदलते गए
मिश्रे तो वही रहे
पर उन्मान बदलते रहे  
कुछ हादसों ने बिना बात
जीवन का रुख ऐसा मोड़ा
दिल तो कभी मिले ही नहीं
अब जीवन भी दूभर हुआ
अलगाव ने सर उठाया
साथ भी गवारा न हुआ
जल की धार न बदली
तट बदलते गए
ना मिलना था न मिले कभी
दूरियां बढ़ती गईं
कच्ची सडकों पर चल न सके
सपाट सड़क से दूर रहे
मीठे मीठे जो स्वप्न बुने थे
अनजाने में खो गए
बीते दिन लौट नहीं पाए
रस्मों ,कसमों  ,वादों में |
आशा