जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते
वे नजर आते जिन्दगी की धड़कनों में
जब धड़कन तेज हो बेकाबू होने लगती
सब कहते धीरज धरो शांती से काम लो |
जब
सांसों की गति मंद पद जाती
कहा जाता व्यर्थ चिंता किस बात की
है यही जिन्दगी का सत्य आज
सब ठीक हो जाएगा समय पा कर |
कहना बड़ा सरल है पर वही जानता है
जिसने समस्याओं को भोगा हो
उनका बहुत संजीदगी से सामना किया हो
फिर भी नहीं खोज पाया हो कोई हल |
वे पैंठ जाती हैं मन में गहराई तक
कैसे उनसे छुटकारा पाऊं
बहुत ही संजीदा होकर सोच रहा हूँ
स्वप्न भी अछूते नहीं रह्ते उनसे |
जैसे ही पलकें बंद होने लगती
स्वप्न पहले से आने को तैयार रहते
बहुत बेचैनी होने लगती है
अपने प्रिय जन को स्वप्न में देख कर |
न जाने कितने भले बुरे ख्याल आते हैं
होता
मन अशांत मुख मंडल क्लांत
दिनरात वही ख्याल मन में रहता
कुछ बुरा तो नहीं होगा |
सभी सपने सच्चे नहीं होते
मन का भटकाव ही
ऐसे
स्वप्नों को देता जन्म
किसी से सलाह लेने को मन चाहता |
पर जिससे बात करो यही उत्तर होता
थोड़ी संजीदगी रखो
मन
को इतनी छूट न दो
किसी
कार्य में रखो व्यस्त मन को |
स्वप्न आएँगे तो अवश्य पर दिल नहीं दुखेगा
बुरे स्वप्नों से कोसों दूर रहोगे
वे होंगे प्रसन्नता से भरे
तबियत होगी संजीदगी से भरी |
चाहिए नहीं कोई तंत्र ना मन्त्र
ऐसी समस्याओं के लिए
खुश रहो और प्रसन्नता बांटो
किसी भी बात को दिल पर न लो |
आशा