05 मई, 2020

संजीदगी















जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते  
 वे नजर आते जिन्दगी की धड़कनों में
जब  धड़कन तेज हो बेकाबू होने लगती
सब कहते धीरज धरो  शांती से काम लो |
 जब सांसों  की गति मंद पद जाती
कहा जाता व्यर्थ  चिंता किस बात की
है यही जिन्दगी का सत्य आज
सब ठीक हो जाएगा समय पा कर |
कहना बड़ा सरल है पर वही जानता है
जिसने समस्याओं को भोगा हो
उनका  बहुत संजीदगी से सामना किया हो
फिर भी नहीं खोज पाया हो कोई हल |
वे पैंठ जाती हैं मन में गहराई तक
कैसे उनसे छुटकारा पाऊं
 बहुत ही संजीदा होकर सोच रहा हूँ
स्वप्न भी अछूते नहीं रह्ते उनसे |
जैसे ही पलकें बंद होने लगती     
स्वप्न पहले से आने को तैयार रहते  
बहुत बेचैनी होने लगती है
अपने  प्रिय जन को स्वप्न  में देख कर  |
न जाने कितने भले बुरे  ख्याल आते हैं
 होता मन अशांत मुख मंडल क्लांत
दिनरात वही ख्याल मन में रहता
कुछ बुरा तो नहीं होगा |
सभी सपने  सच्चे नहीं होते
मन का भटकाव ही
 ऐसे स्वप्नों को देता जन्म
किसी से सलाह लेने को मन चाहता |
पर जिससे बात करो यही उत्तर होता  
थोड़ी संजीदगी रखो
 मन को इतनी छूट न दो
 किसी कार्य में रखो व्यस्त मन को |
 स्वप्न आएँगे तो अवश्य पर दिल नहीं दुखेगा
 बुरे स्वप्नों से कोसों दूर रहोगे
वे होंगे प्रसन्नता से भरे
 तबियत होगी संजीदगी से भरी |
चाहिए नहीं  कोई तंत्र ना मन्त्र
ऐसी समस्याओं के लिए
खुश रहो और प्रसन्नता  बांटो
किसी भी बात को दिल पर न लो |
आशा