आस लगाए कब
से बैठा
मखमली घास
पर आसन जमाया
खलने लगा
अकेलापन
मन को रास
नहीं आया
पास न होने
का
क्या कारण
रहा
यह तक मुझे
नहीं बताया
मैं ही
कल्पना में डूबा रहा
छोटी मोटी
बातों ने
एहसास
तुम्हारा जगाया
जैसे तैसे
मन को समझाया
फिर भी तुम
पर गुस्सा आया
क्या फ़ायदा
झूठे वादों का
तुम्हारे
इंतज़ार का
तुम्हारी
यही वादा खिलाफी
मुझ को रास नहीं आती
मन को चोटिल
कर जाती
आशा