है दर्पण के समक्ष यह कौन
तुम या तुम्हारी प्रतिछाया
हो मौन क्यों ?उदास क्यूँ ?
खिल खिलाती नहीं
बतियाती नहीं
क्या विपदा आन पडी है
क्यूँ उत्तर नहीं देती ?
मैं कोई गैर तो नहीं
हूँ हमराज हमदम तुम्हारा
मुझसे यह दूरी किस लिए ?
इतना भेदभाव किसके लिए
कभी तो मुखर हुआ करो
कुछ अपनी कहो
कुछ मेरी भी सूना करो
केवल यही अपेक्षा हैं तुमसे
मन में भेद न पाला करो
मैं कोई गैर नहीं हूँ
मुझसे सुखदुख बांटा करो
थोड़ी सी है जिन्दगी
यूँही इसे व्यर्थ जाया न करो
कोई समझे या न समझे
पर मैं तुम्हें समझ गया हूँ
मुझसे यह भेदभाव क्या सही है
तुम्ही अब फैसला करो |
आशा