22 दिसंबर, 2019

अपेक्षा तुमसे





है दर्पण के समक्ष यह कौन
तुम  या तुम्हारी  प्रतिछाया
हो  मौन क्यों ?उदास क्यूँ ?
खिल खिलाती नहीं
 बतियाती नहीं
क्या विपदा आन पडी है
क्यूँ उत्तर नहीं देती ?
मैं कोई गैर तो नहीं
हूँ हमराज  हमदम तुम्हारा
मुझसे यह दूरी किस लिए ?
इतना भेदभाव किसके लिए
कभी तो मुखर हुआ करो
कुछ  अपनी कहो
कुछ मेरी भी सूना करो
केवल यही अपेक्षा हैं तुमसे
मन में भेद न पाला करो
मैं कोई गैर नहीं हूँ
मुझसे सुखदुख बांटा करो
थोड़ी सी है जिन्दगी
 यूँही इसे व्यर्थ  जाया न करो
कोई  समझे या न समझे 
पर  मैं तुम्हें समझ गया हूँ
मुझसे यह भेदभाव क्या सही है
तुम्ही अब फैसला करो |

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (23-12-2019) को "थोड़ी सी है जिन्दगी" (चर्चा अंक 3558 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव




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  2. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनुराधा जी |

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  3. वाह ! बहुत सुन्दर रचना ! कभी-कभी मौन भी असहनीय हो जाता है ! कुछ कहना कुछ सुनना भी ज़रूरी होता है ! खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !

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  4. उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद सुधा जी |

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.25 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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