माँ मुझको न्याय चाहिए
क्या है कसूर मेरा ?
यही ना की मैं एक
लड़की हूँ
चाह थी बेटे के आगमन
की
पर मुझे पा उदासी ने
घर घेरा
सभी बुझे बुझे से थे
कोई उत्साह नहीं
गहरी साँसे ले रहे
थे मेरे जन्म पर
पर माँ है क्या कसूर
मेरा ?
जब से समझदार हुई
हूँ
बहुत फर्क देखा है
मैंने
भैया में और खुद में
हर बार की वर्जनाएं
व रोकाटोकी
यह करो यह ना करो
केवल मुझे ही
ऐसा क्यूँ ?
मुझे भी तो हक़ है
अपने अधिकार जानने का
मुझे न्याय चाहिए यह
दुभांत किसलिए ?
रोज कहा जाता है मुझे
पराई संपदा
क्या यह मेरा घर
नहीं है ?
इसी घर में जन्मी
फिर पराई क्यूँ ?
मुझे इस ग्लानी से
छुटकारा चाहिए
मुझको समाज से न्याय चाहिए
यह अंतर किसलिए ?
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को "इक चाय मिल जाए" चर्चा - 3554 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंमेरे रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंहर उपेक्षित लडकी के मन की बात कह दी आपने आशा जी | सादर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेनू जी टिप्पणी के लिए |
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
बेहद खूबसूरत तरीके से सजाकर व्यक्त किया है एक बेटी की व्यथा को। सचमुच आज बेटियाँ को अपने माँ-पिता से ही न्याय की गुहार लगाती पड़ती है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! शाश्वत सवाल जिनके उत्तर हर युग में बेटियाँ ढूँढती आ रही हैं जो कभी मिलते नहीं ! सार्थक चिंतन !
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