16 दिसंबर, 2019

मन ही तो है














 मन ही तो है कागज़ की नाव सा 
बहाव के साथ बहता 
तेज बहाव के साथ वही राह पकड़ता
डगमग डगमग करता |
या तराजू के काँटों सा
पल में  तोला पल में  माशा
है अजब  तमाशा इस  का
कहने को तो है  पूरा  नियंत्रित
पर कोई भी वादा नहीं किसी से
 चाहे जब  परिवर्तित होता  
कभी प्यार से सराबोर होता
कभी वितृष्ण  का स्त्राव होता 
कहीं स्थाईत्व नजर न आता
बारबार कदम डगमगाते
 मन का निर्देश पाकर
कभी हिलने का नाम न लेते
 एक ही जगह थम से  जाते
कितने भी यत्न किये 
पर समझ न पाए
है क्या इसकी मंशा ?
है स्वतंत्र उड़ान का पक्षधर
कोई बाँध न पाया इसको
कहने को तो बहुत किया संयत
फिर भी कमीं रही पूरी न हुई
तराजू का काँटा कभी इधर
तो कभी उधर हुआ
हार कर एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे
है आखिर मन ही इस काया में
 जिसे कोई बाँध न पाया
इसकी थाह  न ले पाया |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. मन तो मन ही है ! कभी उड़ जाता है उन्मुक्त पंछी सा, कभी कागज़ की नाव सा अस्थिर हो लहरों पर डगमगाता है तो कभी तराजू की सुई की तरह चंचल हो संतुलन की बाट जोहता है ! इसकी गति कौन समझ सकता है ! बहुत सुन्दर रचना !

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद टिप्पणी के लिए |टिप्पणी बहुत अच्छी लगी |

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  2. सच है ... अगर मन को किसी ने बाँध लिए वो साधू हो गया ...
    सटीक रचना ...

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद नासवा जी टिप्पणी के लिए |

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  3. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार सर |

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. सुप्रभात
    धन्यवाद सूचना के लिए यशोदा जी |

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