छूने का मन होता बहुत नजदीक से
पर पास
आते ही कांटे चुभ जाते
जानलेवा
कष्ट पहुंचाते |
लगते उस शोड़सी
के समान
जिसका
मुह चूम
स्पर्श सुख लेना चाहता
पर हाथ
बढाते ही सुई सी चुभती
कटु भाषण की बरसात से |
है किसी
की हिम्मत कहाँ
जो छाया
को भी छू सके उसकी
बड़े पहरे
लगे हैं आसपास
मरुस्थल में नागफणी के काँटों के |
जैसे ही
हाथ बढते हैं उसकी ओर
नागफनी
के कंटक चुभते हैं
चुभन से
दर्द उठाता है
बिना छुए
ही जान निकलने लगती है |
वह है नागफणी की सहोदरा सी
जिसकी
रक्षा के लिए कंटक
दिन रात
जुटे रहते हैं
भाई के
रूप में या रक्षकों के साथ
कभी भूल
कर भी अकेली नहीं छोड़ते |
नागफणी और उसमें है गजब की
समानता
वह
शब्दों के बाण चलाती है डरती नहीं है
मरुस्थल के काँटों जैसे रक्षकों की मदद ले
दुश्मनों
से टक्कर ले खुद को बचाती है |
आशा