13 अप्रैल, 2020

आत्म मंथन






हंसने हंसाने के लिए
कोई तो बहाना  चाहिए
जिन्दगी है चार दिनों की
यह  नहीं भूलना  चाहिए |
आए थे संसार में  रोते हुए
 ज्यादा जीवन बिताया कभी
हंसते कभी सिसकते हुए
अब बारी आई  भक्ति में लीन होने की |
 वह भी लगती है असंभव
मन उलझा रहता सदा
 मद मत्सर  माया मोह में
 दूरी बनाने का कोई उपाय नहीं|  
जब आत्म मंथन किया
अपने गुण दोषों को परखा
पाई हजार त्रुटियाँ  खुद में
पर स्वीकार न कर पाई
यही   कमी रही मुझमें |
जिससे बच  नहीं पाई
इस गरूर में खोई रही 
मुझे कोई क्या समझाएगा
खुद को पूर्ण  समझती रही |
अब पश्च्याताप  से क्या लाभ
जिन्दगी की शाम आई
बिना आत्म मंथन के
बिना हरी के  भजन के  |
अब अंत समय आया है
भगवान की कैसी माया है
जान नहीं पाई अब तक
 कितना खो कर  क्या पाया है|
                             आशा    

3 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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  2. ज़रूरी तो नहीं ज़िदगी का हर पल इसी हिसाब किताब में गँवा दिया जाए कि क्या खोया क्या पाया ! जो मिला जितना मिला उसके लिए मन में आभार होना चाहिए और आने वाला हर पल सार्थाकता के साथ जीना चाहिए ! बस इतना ही काफी है !

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