हंसने हंसाने के लिए
कोई तो बहाना चाहिए
जिन्दगी है चार दिनों की
यह नहीं भूलना चाहिए |
आए थे संसार में रोते हुए
ज्यादा जीवन बिताया कभी
हंसते कभी सिसकते हुए
अब बारी आई भक्ति में लीन होने की |
वह भी लगती है असंभव
मन उलझा रहता सदा
मद मत्सर माया मोह में
दूरी बनाने का कोई उपाय नहीं|
जब आत्म मंथन किया
अपने गुण दोषों को परखा
पाई हजार त्रुटियाँ खुद में
पर स्वीकार न कर पाई
यही कमी रही मुझमें |
जिससे बच नहीं पाई
इस गरूर में खोई रही
मुझे कोई क्या समझाएगा
खुद को पूर्ण समझती रही |
अब पश्च्याताप से क्या लाभ
जिन्दगी की शाम आई
बिना आत्म मंथन के
बिना हरी के भजन के |
अब अंत समय आया है
भगवान की कैसी माया है
जान नहीं पाई अब तक
कितना खो कर क्या पाया है|
आशा
वाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंज़रूरी तो नहीं ज़िदगी का हर पल इसी हिसाब किताब में गँवा दिया जाए कि क्या खोया क्या पाया ! जो मिला जितना मिला उसके लिए मन में आभार होना चाहिए और आने वाला हर पल सार्थाकता के साथ जीना चाहिए ! बस इतना ही काफी है !
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