था लंबा अवकाश ऑफिस जाना न था
बैठे बैठे उकता रहा था
कोई काम नजर नहीं आ रहा था
सोचा देखूं चौके में क्या हो रहा है ?
देखा सिंक का नल खुला था
बरतन जल से आपस में होली खेल
रहे थे
एक कढ़ाई बहुत गंदी थी
सोचा क्यूँ न इसे साफ कर दूं
कुछ तो समय का सदउपयोग करू
ऐसे
तो समय नहीं मिलता
व्यस्तता भरी जिन्दगी में
व्यस्तता भरी जिन्दगी में
जीवन की आपाधापी में
समय का अभाव सदा रहता
समय का अभाव सदा रहता
मैंने उसे उठाया तेज गर्म किया
पानी और सर्फ लिया
पानी और सर्फ लिया
स्काच ब्राईट से पूरा दम लगा कर रगड़ा
चमकाया उसे पूरे मनोयोग से
कहा उनसे देखो कैसे चमक रही है
मानो है सध्य स्नाना मुस्कुराती युवती
लौट आया है योवन उसका
पर अन्य बर्तन भी देख रहे थे यह मंजर
उनका प्रश्न था यह भेदभाव क्यूँ ?
मैं अकेला इतना सब नहीं कर पाता
बाई को भी न आना था
असमंजस में था क्या करूं
असमंजस में था क्या करूं
पत्नी से मांगी सहायता
उसका साथ पा
उसका साथ पा
बर्तनों की सफाई का कार्य सम्पन्न किया
थे वे बहुत खुश चमचमा रहे थे
अपने को नया नवेला जान
अपने को नया नवेला जान
दुआएं दे रहे थे
आपस में चर्चा कर रहे थे |
आपस में चर्चा कर रहे थे |
जानना चाहोगे क्या कह रहे थे ? वे कह रहे थे
“जैसे जीवन पर्यंत साथ निभाने का वादा
कियी
है तुमने अपनी जीवन संगिनी से
हमारा भी वादा है तुमसे जब तक जियेंगे
तुम्हारा साथ निभाएंगे पूरी शिद्दत से
कभी न वादा तोड़ेगे अपनी कसम से” |
आशा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंलॉक डाउन के चलते ऐसी दावे, किस्से, कहानियाँ, चुटकुले खूब दिखाई दे रहे हैं हर जगह ! लेकिन वाकई में कौन कितने बर्तन चमकाता है और कहाँ चमकाता है यह अभी तक दिखाई नहीं दिया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
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