05 दिसंबर, 2020

हाईकू (मौसम बदला )



बरखा गई
मौसम बदला है
ठण्ड आगई 
 
सूर्य किरण
गवाह है उसकी
रौशनी मंद 
 
नम ग्रास है
पत्ते गीले ओस से
सुहाना समा 
 
ठंडी रात है 
गर्म कपड़ों से भी
सर्दी न गई 
 
 
 अलाव जला
कपडे फटे टूटे
तन ढकते
 
आशा



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    04 दिसंबर, 2020

    क्षुधा तुम्हारी

     

     


                                           क्षुधा  तुम्हारी है असीम

    कभी समाप्त नहीं होती

    है ऐसा क्या उसमें विशेष

    जिसे देख कर तृप्त नहीं होते |

    इस प्यास का कोई तो उपचार होगा

    कोई  डाक्टर तो होगा 

      जो उसकी जड़ तक पहुंचे  उसे समझ पाए

    सही उपचार करके उसे  विदा कर सके |

     कभी न देखे ऐसे मरीज और उपचारक

    सामने बीमार खड़ा हो और उपचार में सहयोग न दे

    क्या सोचें  ऐसे बीमारों पर जिसके निदान की

     कितनी भी  हो आवश्यकता पर हल न हो

    दिल का सुकून भी साथ ले जाए |

    आशा

     

    03 दिसंबर, 2020

    कृषक


    हो तुम महनतकश कृषक

     तुम अथक परिश्रम करते

    कितनों की भूख मिटाने के लिए

    दिन को दिन नहीं समझते |

    रात को थके हारे जब घर को लौटते

    जो मिलता उसी से अपना पेट भर

    निश्चिन्त हो रात की नींद पूरी करते

    दूसरे दिन की  फिर भी चिंता रहती |

    प्रातः काल उठते ही

    अपने खेत की ओर रुख करते

    दिन रात की  मेहनत रंग लाती 

    जब खेती खेतों में लहलहाती |

    तुम्हारा यही परीश्रम यही  समर्पण

     तुम्हें बनाता विशिष्ट सबसे अलग

    हो तुम  सबसे भिन्न हमारे अन्न दाता|

    आशा

     

    01 दिसंबर, 2020

    कुछ असंभव नहीं


    कभी शिकवा न किया

    किसी से शिकायत नहीं की

    फिर भी सभी ने दोष दिया

    जरूर कुछ तो किया होगा |

    जब अपनी बात कहना चाही

    जितनी भी कोशिश की

    किसी ने न मानी

    सभी यत्न  व्यर्थ  हुए |

    कहने को तो यही रहा

    जो किया ठीक न किया

    सच  यही है किसी ने

    सही गलत का  भेद बताया  नहीं |

    अनजाने में की गलतियां  भूल नहीं होतीं

     सुधारी जा  सकती हैं हालात से समझोता होता है

    वह  एक सीमा तक तो  है संभव

    पर असम्भव नहीं |

    आशा