बहुत  साम्य  दिखता है
सागर में और तुझ  में
कई बार सोचती हूँ
कैसे  समझ पाऊँ तुझे |
सागर सी गहराई तुझ  में
मन भरा हुआ विचारों से
उन्हें समझना
 बहुत कठिन है
थाह तुम्हारी पाऊँ कैसे |
पाना थाह सागर की
फिर भी सरल हो सकती है
पर तुझे  समझ पाना
है  बहुत कठिन |
थाह तेरे  मन की पाना
और उसके अनुकूल
ढालना खुद को
है  उससे भी कठिन |
मुझे तो सागर में और तुझ में
बहुत समानता   दिखती  है
सागर शांत रहता है
गहन गंभीर दिखता है |
पर जब वह उग्र होता है
उसके स्वभाव को
कुछ तो समझा जा सकता है
किया जा सकता है
 कुछ संयत |
उसकी हलचल पर  नियंत्रण
कुछ  तो सम्भव  है
पर तेरे अंदर उठे ज्वार को
बस में करना
 लगता  असंभव
                                                                                                                            पर हर्ज क्या
 एक प्रयत्न  में                                                                                                                                                                                                                                                                                
दिल के सागर में
डुबकी लगाने में
उसकी गहराई नापने में
यदि एक रत्न भी मिल जाए
उसे  अपनी अँगूठी में सजाने में |
आशा
 
