बरस दर बरस बीत गए
पुस्तकों से दूर हुए
पलट कर न देखा कभी
क्या हाल हुआ उनका |
सोचा अब क्या लाभ
समय बर्बाद करने का
दो काम अधिक हो सकते हैं
यदि उनको लेकर ना बैठी |
समय चक्र चलता गया
व्यस्तता कम न हो पाई
आज अचानक जाने क्यूं
पुराना जखीरा ले बैठी |
बहुत पुरानी पुस्तक थी
अक्षर घूमिल से लगे
चिन्हित अंश देखते ही
मैं विगत में खो गयी |
थी यह सबसे प्रिय मुझे
कैसे विस्मृत हो गयी
हुआ फिर अहसास
रचे गए आडम्बर का |
छलकी आँखें नीर बहा
थमने का नाम नहीं लेता
फिर भी सोचती रही
मैं क्या से क्या हो गयी |
आशा
छलकी आँखें नीर बहा
थमने का नाम नहीं लेता
फिर भी सोचती रही
मैं क्या से क्या हो गयी |
आशा