24 जून, 2014

अविरल धारा



अविरल धारा नदिया की
दे रही सन्देश यही
जीवन उस जैसा हो
ना बाधाओं ने घेरा हो |
झर झर झरता झरना
पर्वत से नीचे आता
तनिक भी भयभीत नहीं
जिंदगी नहीं उस जैसी
पर सभी लगते सपने से
जीवन ऐसा गतिमान नहीं
बाधित होता रहता
उतार चढ़ाव से भरा रहता  |
चंद लोग ही होते ऐसे
जो हर बाधा पार करते
कोई पत्थर ऐसा नहीं
जिसे नहीं हटा पाते |
व्यवधान अंतराल बाधाएं
जीवन मार्ग कठिन करते
जब पार उन्हें कर लेते
सम्रद्ध होने का श्रेय लेते |
भ्रम से भ्रमित नहीं होते
समय का दामन थामे 
अग्रसर होते जाते
सफलता की कुंजी पाते  |
आशा

हईगा वर्षा पर





23 जून, 2014

चित्र क्षणिका

बर्फ कीचादर बिछी है 
जलधारा ने दो टूक किया 
पर दिल नहीं बट पाए 
जितने भी यत्न किये |


प्यार जताता
भोला सा बचपन
चतुष्पद से |


दीपक जला
स्नेह सिक्त वर्तिका
तिमिर छटा |
आशा

21 जून, 2014

मेध अषाढ़ का



















विरही मन
देख काली घटाएं
हुआ बेकल
अश्रुओं की वर्षा करता
जल प्लावन का
 सन्देश दे रहा 
मेघ अषाढ़ का
वाहक संदेशों का
उमढ़ घुमड़ आया
बरखा रानी ने दी दस्तक
पाती प्रिय की  लाया |
झोंका पवन का
झझकोरता मन
मिट्टी की सौंधी सुगंध
दूर तक ले जाता
समूचा हिला जाता |
मेघ गरजता
रिमझिम  बरसता
गर्म मिजाज मौसम भी
नर्म हुआ जाता |
आशा

20 जून, 2014

कुंजी खुशहाली की







भविष्य का क्या ठिकाना
होगा क्या पता नहीं
बीता कल भी फिर से
नहीं लौट पाएगा
जिसके बल खुद को भुलाएं
सच्चाई तो यही है
खुशहाल जीवन की कुंजी
वर्तमान में ही है |
फिर क्यूं न वर्तमान में जी लें
खुशी  झलकती चहरे से
उसी से संतुष्ट होलें
सुख दुःख का आकलन करलें |
आशा

19 जून, 2014

तेरी पाती








मैं धरती तू गगन
कैसे पहुंचू तुझ तक
दूरी कम न  होती
यही सह न पाती  |
उग्र हुआ तपता सूरज
तेरा ताप न कम होता
मैं कैसे धीर धरूं
शीतल हो न पाऊँ |
रेल की पटरियों सी
जीवन शैली दोनों की
चलती जाती दूर तलक
दूरी कम न होती |
हम दो ध्रुव धरा के
एक साथ नहीं होते
पर  है बहुत समानता
जिसे झुटला नहीं सकते |
यही बात मुझे तुझ तक
जाने कब ले आती है
दूरी दूरी नहीं लगती
जब तेरी पाती आती  |
आशा

18 जून, 2014

मानव दानव हुआ




 


कण कण धरा का
हुआ रक्त रंजित
होते व्यभिचारों से
संवेदनाएं मर गईं
लोगों के व्यवहारों से
ना कोइ रिश्ता
सच दीखता
मानव दानव हुआ
 बुद्धिहीन व्यवहार उसका
शर्मसार कर गया |
आशा