पहुँच न पाया आज तक
बैतरनी कर पार तुझ तक
प्रयत्न कोई न छोड़ा
आस पर जिया |
कोई बाधा न आई
तुझ तक पहुँचने में
तुझे अपना कहने में
कल्पना में ही सही |
है यह शास्वत सत्य
किसी ने न देखा न छुआ
केवल तुझे अनुभव किया
अटल विश्वास जगा |
कल्पना की तस्वीर बनाई
मूर्तियों में उसे उकेरा
तेरा अक्स उन्हीं में पाया
नत मस्तक किया |
पा सान्निध्य तेरा वहां
जो अनुभूति हुई
कैसे बयान करू
शब्द नहीं मिलते |
अब दृष्टि जहां तक जाती है
केवल तुझे ही पाती है
जब बंद आँखें करू
तुझ में ही खोया रहूँ |
सहत्र नाम तेरे
प्रतिदिन लिए जाते हैं
तुझ तक पहुँचने को
कई मार्ग चुने जाते हैं |
धर्म अनेक गंतव्य एक
जिसके मन में जैसा आता
उसी रूप में तुझको पाता
कभी धर्म आड़े न आता |
तू सृष्टि के कण कण में
तेरा आसन सबके मन में
कर भवसागर से पार
ओ मेरे करतार |
आशा