19 नवंबर, 2014
18 नवंबर, 2014
बीते दिन लौट नहीं पाए
बीते दिन लौट नहीं पाए
पर दृश्य बदलते गए
मिश्रे तो वही रहे
पर उन्मान बदलते रहे
कुछ हादसों ने बिना बात
जीवन का रुख ऐसा मोड़ा
दिल तो कभी मिले ही नहीं
अब जीवन भी दूभर हुआ
अलगाव ने सर उठाया
साथ भी गवारा न हुआ
जल की धार न बदली
तट बदलते गए
ना मिलना था न मिले कभी
दूरियां बढ़ती गईं
कच्ची सडकों पर चल न सके
सपाट सड़क से दूर रहे
मीठे मीठे जो स्वप्न बुने थे
अनजाने में खो गए
बीते दिन लौट नहीं पाए
रस्मों ,कसमों ,वादों में |
आशा
15 नवंबर, 2014
लौटाई बरात
चाँद सा दूल्हा न
सज पाया
घोडी चढ़ा पर बरात
न गई
दुलहन बिनब्याही
ही रही
कारण से अनजान थे
जो
सच से थे वे दूर बहुत
असली बात न जान
पाए
फिकरेबाजी करते
रहे
सर पर पगड़ी
मूंछों पर ताव
मांग इतनी तगड़ी थी
दंभ भरी आवाज थी
सारी फसाद की जड़ था
सारी फसाद की जड़ था
दूल्हे का पिता
वही था
पर लाठी बेआवाज
थी
मांग पूरी न हो
पाई
शादी की बात कहाँ
से आई
लौट रही बरात थी
बिन व्याही दुलहन
खड़ी
पुलिस की दविश
पडी
हवालात की कोठारी
खुली
अब ना वह अकड़ रही
और न मूछों पर ताव
जमानत तक के लाले
पड़े
मच गया कोहराम
पर गर्व पिता को
था बेटी पर
जो जूझी दहेज़ के
दानव से
अंत में विजयी हुई
इस समाज की कुरीति
से |
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