जागती आँखों के
आगे से 
गुजरे बीते कल के फ़साने 
एक के बाद एक
ठेस लगी मन को |
वह आहत हुआ
चोटिल हुआ
चोटिल हुआ
आज तक भूल न पाया
गुजरे हुए कल 
को|
जाने कैसे दबी आग
से 
चिंगारी उठी
चिंगारी उठी
हवा ने उसको
बहकाया 
आग में परिवर्तित
हुई |
मन धूं धूं कर
जलने लगा 
ठंडी बयार के एक
झोंके ने 
मलहम का काम किया
अग्नि को ठंडा
किया |
समय तो लगा 
पर मन की पीड़ा को
शांत किया 
धीरे धीरे सहज
हुई 
कटुता से मुख
मोड़ा |
फिर भी मन के
किसी कौने में 
बीते कल ने पैर
पसारे 
फ़लसफ़े मन से न गए
कहीं दुबक कर रह
गए |
अनुभव इतने कटु
हों क्यूं 
जो सुख चैन मन का
हरें
रिश्तों में घुली
कड़वाहट 
बार बार आक्रामक हो  |
आशा 
 
