28 मई, 2015

फ़साने कल के



जागती आँखों के आगे से
गुजरे बीते कल के फ़साने
एक के बाद एक
ठेस लगी मन को |
वह आहत हुआ
 चोटिल हुआ
आज तक भूल न पाया
गुजरे हुए कल  को|
जाने कैसे दबी आग से 
चिंगारी उठी
हवा ने उसको बहकाया
आग में परिवर्तित हुई |
मन धूं धूं कर जलने लगा
ठंडी बयार के एक झोंके ने
मलहम का काम किया
अग्नि को ठंडा किया |
समय तो लगा
पर मन की पीड़ा को शांत किया
धीरे धीरे सहज हुई
कटुता से मुख मोड़ा |
फिर भी मन के किसी कौने में
बीते कल ने पैर पसारे
फ़लसफ़े मन से न गए
कहीं दुबक कर रह गए |
अनुभव इतने कटु हों क्यूं
जो सुख चैन मन का हरें
रिश्तों में घुली कड़वाहट
बार बार आक्रामक हो  |
आशा

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