24 जुलाई, 2015

कैसा न्याय

है यह कैसा न्याय प्रभू 
धनिक  फलता फूलता 
गरीब और गरीब हो जाता
 अपनी बेबसी पर रोता |
भोजन का अभाव सदा 
भूखा उठाता भूखा सुलाता 
अन्न के अभाव में 
वह जर्जर होता जाता |
अमीर कद्र न जानता 
पेट भरा होने पर
 अनादर अन्न का करता
घूरे तक पर फैकता |
आया हूँ तेरे द्वार आज 
न्याय की अपेक्षा है 
खाली हाथ न लौटाना 
होगा तेरा उपकार प्रभू |
भूखे को भोजन देना 
अपना संरक्षण देना 
प्यार की सौहाद्र की 
उपेक्षा न होने देना |
अमीर गरीब के मध्य 
खाई बढ़ न जाए
सौहाद्र बनाए रखना 
 सम दृष्टि सभी पर  रखना |
आशा



22 जुलाई, 2015

असंतोष

चक्र व्यूह के लिए चित्र परिणाम

सुख साधन जोड़े थे 
उनको जिया जी भर के 
यथा संभव खुशियां  समेटीं 
फिर भी असंतोष मन में |
है यह कैसा चक्रव्यूह 
अभिमंन्यू  सा फैसता गया 
सभी यत्न विफल हुए 
बाहर निकलने में |
कभी पढ़ा था 
संतोषी सदा सुखी 
पर वह रह गया वहीं 
जीवन में न उतर पाया |
आकांक्षाएं बढ़ती गईं 
पूर्ति जिनकी थी असंभव 
संयम की नाव डगमगाई 
समूचा हिला गई |
विकराल रूप ले लहरों ने
बीच भंवर तक पहुंचाया 
जीवन नैया डूब रही 
असंतोष के  भंवर में |
जीवन भार सा हुआ 
संतुष्टि के अभाव में 
खुशियाँ सारी खो गईं 
जीवन के अंतिम पड़ाव में |
आशा




20 जुलाई, 2015

मिज़ाज मौसम का


मौसम का मिजाज के लिए चित्र परिणाम
पहले सूखे की आशंका
फिर अति की वर्षा
यह कैसा मिज़ाज तेरा
 आभास तक  न  होता
जरा सी बेरुखी तेरी
समूचा हिला जाती
कितनी आशाएं जुड़ी तुझसे
क्यूं समझ नहीं पाता
बूँद बूँद को तरसती निगाहें
तपिश इतनी कि जीना मुहाल है
उस उमस का क्या करें
जो बेरहम होती  जाती
तब भी तुझे दया न आती
कभी गर्मी कभी सर्दी
तेरा व्यवहार अनोखा
जीवन सहज न हो पाता
बेचैन किये रहता
ऐसी अपक्षा न थी   तुझसे
कभी तो सामान्य हो
जिन्दगी सरल हो पाए
तनाव से छुटकारा हो |
आशा