13 सितंबर, 2016

चुभन



 Image result for उलझन सुलझे ना

उलझनों की अति हो गई
बोझ मन का कैसे हल्का हो
कहने को शब्द नहीं मिलते
मुंह तक आते आते ही
बेआवाज होते जाते हैं
अब तो लगाने लगा है
ताला जवां पर लग गया है
अब कुछ किसी से नहीं कहना
फ़कत उलझनों का
एहसास ही काफी है
यही एहसास जब तब
शूल सा चुभने लगता है
जिसे निकाल फेंका पहले ही
पर आज भी चुभन होती है
अब तो अंतराल में होती
खलिश का एहसास ही काफ़ी है |
आशा

09 सितंबर, 2016

मित्र ( हाईकू )

कृष्ण सुदामा 
मित्रता की मिसाल 
जग जानता |

हों सच्चे मित्र 
कैसे जाना जा सके 
वख्त बताए |

हैं सभी मित्र 
बचपन से हम 
नहीं बिखरे |

आज परिक्षा 
हम सच्चे मित्रों की 
सफल होंगे |

सच्चा मित्र 
खोजे नहीं मिलता 
सब जानते |

सही राय दे 
गलत कभी नहीं 
है वही मित्र |

आशा



08 सितंबर, 2016

भाग्य उसका

 Image result for बर्फ पर जूझते सैनिक
बर्फ में दफन हुआ था 
भाग्य ने उसे बचाया 
पर साँसें थी गिनती की 
उसकी जिन्दगी की 
चमत्कार हुआ वह बचा 
पर कुछ पल ही रह पाया 
सभी यत्न असफल रहे 
जीवन पुनः देने के 
यह भाग्य न था
 तो और क्या था 
शहादत देने वालों में 
एक नाम और जुड़ गया  |
आशा



05 सितंबर, 2016

गुरू शिष्य

 Image result for द्रोणाचार्य अर्जुन
योग्य धनुर्धर होने को 
हो पूर्ण ध्यान निशाने पर 
लक्ष्य भेदन तभी संभव 
जब एकाग्र हो मन  निरंतर
शिक्षा थी गुरू की यही 
स्वीकार जिसे शिद्दत से किया 
ध्यान तभी केन्द्रित हुआ 
तीर निशाने पर लगा 
है अति  विशिष्ट 
गुरू शिष्य का नाता 
काल पुरातन से आज तक 
कोई भ्रमित न इससे हुआ 
जैसे पहले महत्त्व  था इसका
आज भी वह कम न हुआ 
|शिक्षा जिससे भी मिले
 शिरोधार्य शिष्य करे 
तभी पूर्णता का भास् हो 
शिष्य का विकास हो |

आशा


02 सितंबर, 2016

क्षणिकाएं

Image result for kamal ka phool
 १ 
 रूप खिले कमल के फूल सा 
महकता तन मन संदल सा 
गाता गुनगुनाता सुनता सुनाता 
चहकता स्वर उपवन में पंछी सा । 
२ 
बरसों के बिछुड़े अब मिले 
तब जा कर दिल से दिल जुड़े 
मनवा बेचैन कुछ कहे न कहे 
आँखें तरस गईं थीं बिना मिले ।

प्रातः बेला में खिली कुमुदनी
यही उसे जीवंत बनाती
मीठी सी मुस्कान लिए
बधाइयों की झाड़ी लगाती |
 आशा

31 अगस्त, 2016

एक अफ़साना


एक अफसाना सुनाया आपने
गहराई तक पैठ गया मन में
जब पास बुलाया आपने
थमता सा पाया उस पल को
कसक शब्दों की आपके
वर्षों तक बेचैन करती रही
जब भी भुलाना चाहा उसे
तीव्रता उसकी बढ़ती गई
जो दीप जलाया था मन मंदिर में
झोंका हवा का सह न सका
तीव्रता बाती की बढ़ी
लौ कपकपाई और बुझ गई 
प्रतिक्रया अफसाने की
आखिर किससे सांझा करती 
आप से कुछ कह न सकी
मन की मन में रह गई |
आशा