12 दिसंबर, 2016
11 दिसंबर, 2016
10 दिसंबर, 2016
अपनी क्षमता जान
गुजर गया बीता कल
अपनी यादें छोड़ कर
उसकी याद न कर
मन को रख सबल |
सक्रीय हो जा आज
वर्तमान में जी ले
क्या होगा कल
इसकी किसको खबर |
संयत कर मन अपना
न जाने कैसा होगा
आनेवाले कल का
भविष्य फल |
न भविष्य न भूत काल
है वह वर्तमान
आज में जी करअपना
भविष्य सुनिश्चित कर ले |
न कर सीमा का उल्लंघन
अपनी क्षमता जान
सदुपयोग जीवन का कर
आशा का दामन थाम |
आशा
07 दिसंबर, 2016
आखिर कब तक
अर्श से फर्श तक
बन सी गई कच्ची सड़क
है अंतहीन काँटों से भरी
न जाने जाएगी कहाँ तक
फिर भी भरी है
आकांक्षाओं से
जगह जगह राहों में
छोटे बड़े ठेले लगे हैं
कहीं कहीं मेले भी हैं
चाहे जब इच्छाएं
सर उठाने लगती हैं
कहीं हैं विश्राम गृह
रुक जाने का भी
मन होता है
पर मन असंतुष्ट
कुछ करने नहीं देता
उसकी कातरता देख
दारुण दुःख होता
यही बड़ी समस्या है
उलझन युक्त मन की
विलुप्त होती खुशियाँ
सिमटने लगतीं
भार जिन्दगी लगती
भटकती यहाँ वहां
मुक्ति की तलाश में
है व्यर्थ यह भी सोचना
अन्धकार में हाथ मारना
अनजाने मार्ग पर चल कर
उसपार पहुँचाने की कल्पना
तक अधर में लटक जाती
कभी माया कदम रोकती
तभी सुकून से दूरी होती
आखिर कब तक झूलना होगा
इस जन्म मरण के झूले पर
कब पार हो पाएगी
वह अंतहीन कच्ची डगर |
आशा
04 दिसंबर, 2016
महिमा कार्य की
न बड़ा न कोई छोटा
काम तो बस काम है
काम को ऐसे न टालो
जीवन में इसे उतारलो
है यह प्रमुख
अंग जीवन का
जिसके बिना
वह रह जाता अधूरा
एक विकलांग प्राणी सा
मानव जीवन
कार्य से ही पूर्ण होता
व्यस्त सदा बना रहता
कार्य यदि उपयोगी होता
जीवन सफल हो पाता
उससे मिली प्रशंसा से
वह पूर्णता को प्राप्त होता
और सकारथ हो
पाता.
आशा
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